समय: पूर्वाह्न 5:00
बीप-बीप बीप-बीप बीप-बीप...
स्नूज़/ डिसमिस
समय: पूर्वाह्न 5:30
टिटिटिटि टिटिटिटि टिटिटिट...
स्नूज़/ डिसमिस
समय: पूर्वाह्न 6:00
वेक अप सिड, सारे पल कहे.. वेक अप..
स्नूज़/ डिसमिस
समय: पूर्वाह्न 8:00
पलकों की पकड़ आँखों पर ढ़ीली पड़ी, अलसायी सी नज़र दीवाल घड़ी पर पड़ी, और एक ही क्षण में मानो सारा आलस रफुचक्कर हो गया। उफ ये कम्बख्त नींद, आज फिर देर हो जायेगी।
यह व्यक्तव्य किसी एक सांसारिक प्राणी का नही है। यह लगभग सभी की कहानी है। हर उस व्यक्ति की कहानी जो जागने के लिये एक से ज्यादा अलार्म पर निर्भर रहता है। पहले अलार्म को वह इस विश्वास के साथ बंद करता है कि अगला अलार्म भी बजेगा। और दूसरे को बंद करता है तीसरे के भरोसे। तीसरे तक पहुँचते पहुँचते वह भूल चुका होता है कि वो अलार्म क्यो बंद कर रहा है, और गणितीय प्रेरण के सिद्धांत का अनुसरण करते हुए वह तीसरे को भी बंद कर देता है। हर अलार्म को बंद करते वक़्त वह थोड़ी देर के लिये जागता जरुर है, जहाँ उसके पास मौका होता है कि वह पूरी तरह से जाग सके, परन्तु हर बार इस मौके को खो कर वह वापिस अपने सपनों की दुनिया में लौट जाता है। और जब वह जागता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
और आज भी यही हो रहा है। हम सोते ही जा रहे हैं, अलार्मों को नज़रअंदाज़ करते हुए। देश की हालत किसी से छिपी नही है। और गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई फायदा होने वाला नही है। और सबकुछ अपनी खुली आँखो से देखने के बावजूद हम सो रहे हैं।पहला अलार्म अन्ना ने बजाया था, तब हम थोड़ी देर के लिये जगे थे। थोड़ा हो-हंगामा किया, इस देश के जिम्मेदार नागरिक बनने की शपथ भी ली। पर हम फिर सो गये, सबकुछ भूल कर। दूसरी बार अलार्म बजा जो अरविंद ने बजाया। कुछ लोगो की आँखें फिर खुली, जो कि वापस उनिंदा अवस्था में पहुँच चुकी हैं। अब हमारे पास बस एक अलार्म और बचा है। वह तब बजेगा जब चुनाव आयेगा। अगर हम तब भी सोते रह गये तो यह देखने के लिये किसी बाबा के चौथी आँख की जरुरत नहीं कि हमारे जागने तक बहुत देर हो चुकी होगी।
बाबा तो फिर भी रहेंगे, पर तब तक शायद उनका ये देश बिक चुका होगा। क्या हम ऐसा होने देंगे? इसका जबाब मैं नहीं दूँगा। मैने जागने की पूरी तैयारी कर ली है। अब बस ये देखना है कि कितने लोग और जाग पाते हैं।
नम आँखों से बस इस बात का इन्तेज़ार है
कि बंद आँखें कब नम हो पाती हैं।